बैजू बावरा रेट्रो रिव्यू: जब सुरों से हुआ प्रतिशोध | क्लासिक म्यूज़िकल का जादू

शालिनी तिवारी
शालिनी तिवारी

1952 में जब बैजू बावरा रिलीज़ हुई, तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि संगीत से भी बदला लिया जा सकता है। लेकिन बैजू ने ये करके दिखाया — और वो भी तानसेन से!

अगर आज कोई कहे “मैं राग भैरवी में तेरा सर्वनाश कर दूंगा”, तो शायद ब्रेकअप कर ले… लेकिन तब ये डायलॉग क्लाइमेक्स था।

भारत भूषण की एक्टिंग और मीना कुमारी की मासूमियत

बैजू बने भारत भूषण — चेहरे पर संगीत का दर्द और आँखों में मुरली का जूनून। और मीना कुमारी? जैसे राग यमन को पर्दे पर उतार दिया गया हो।
इन दोनों की केमिस्ट्री घूंघट में छुपी मोहब्बत और राग में डूबा इश्क जैसी लगती है।

नौशाद: जिसने म्यूज़िक को मंदिर बना दिया

नौशाद साहब ने इस फिल्म में जो किया, वो सिर्फ संगीत नहीं था — वो आरती थी, वो तपस्या थी!
गाने जैसे —
“मन तड़पत हरि दर्शन को आज…”
“ओ दुनिया के रखवाले…”
ये वो गाने हैं जो आज भी यूट्यूब पर “कमेन्ट पढ़ने के लिए आए” जैसी भावनाएं लाते हैं।

मोहम्मद रफ़ी ने क्या ही तान मारी है!

रफ़ी साहब की आवाज़ जैसे सीधे कानों से दिल तक जाती है, और वहाँ जाकर कहती है:
“तू रो भी ले, ये 1952 है, इमोशनल होना allowed है!”

मिया! हम लखनऊ वाले हैं, चिकन खाते भी हैं और पहनते भी हैं, मिलो फुर्सत में

आजकल जहां हीरो बदला लेने के लिए हॉकी स्टिक या डायलॉग लेकर आता है, बैजू तान लेकर आता था। और सामनेवाला कहता था: “क्या राग है ये, जान ही ले ली!”

तानसेन का defeat हुआ… और वो भी live concert में। अगर वो आज होता तो यूट्यूब पर “Baiju vs Tansen Live Battle – Must Watch” चलता।

बैजू बावरा क्यों देखें आज?

  • अगर आपको लगता है कि “अच्छी फिल्में अब नहीं बनतीं”, तो देखिए बैजू बावरा — जहां हर सुर, हर संवाद और हर सीन में इबादत है।

  • अगर आप भी किसी एक्स से बदला लेना चाहते हैं, तो सुझाव है — गिटार क्लास जॉइन कीजिए। हो सकता है, राग मालकौंस में आप भी उसका मन बदल दें।

जब सुरों से बदला भी सलीके से लिया गया

बैजू बावरा एक ऐसी फिल्म है जो बताती है कि संगीत सिर्फ मनोरंजन नहीं — एक हथियार भी हो सकता है। यह क्लासिक फिल्म आज के शोर में ठहराव की तलाश करने वालों के लिए बिल्कुल सही टॉनिक है।

सूजा चेहरा, मजबूत आवाज़: जासमीन मंजूर की कहानी सुन लो अब

Related posts

Leave a Comment